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Baal Kavita बाल-कविता लोकप्रिय बाल-कविताएँ Kid poem Child poem bachhon ki kavita

अमीबा / प्रदीपशुक्ल Baal Kavita बाल-कविता 

 एक अमीबा बड़े मज़े से
नाले में था रहता
अरे! वही गंदा नाला, जो
सड़क पार था बहता

कहने को तो एक अमीबा
ढेरों उसके बच्चे
नाले में उनकी कालोनी
रहते गुच्छे-गुच्छे

क्रिकेट खेलते हुए गेंद
नाले में गिरी छपाक
आव न देखा ताव न देखा
पप्पू गया तपाक

साथ गेंद के कई अमीबा
पप्पू लेकर आया
बड़े-बड़े नाखून, भूल से
उनको वहीं छुपाया

हाथ नहीं धोए अच्छे से
पप्पू ने घर जाकर
ख़ुश थे बहुत अमीबा सारे
उसके पेट में जाकर

रात हुई पप्पू चिल्लाया
हुई पेट में गुड़-गुड़
सारे बच्चे समझ रहे हैं
कहाँ-कहाँ थी गड़बड़

अमृता / दीनदयाल शर्मा Baal Kavita बाल-कविता 

 अमृता ने ही कहा
चलो मिलकर चलते हैं
चलो मिलकर जीते हैं।।।
कितना मुश्किल है
पहल करना
महान थी अमृता।

अम्माँ को क्या सूझी / रमेश तैलंग Baal Kavita बाल-कविता 

 अम्माँ को क्या सूझी
मुझको कच्ची नींद सुलाकर,
बैठ गई हैं धूप सेंकने
ऊपर छत पर जाकर।

जाग गया हूँ मैं, अब कैसे
खबर उन्हें पहुँचाऊँ?
अम्माँ! अम्माँ! कहकर उनको
कितनी बार बुलाऊँ?

पाँव अभी हैं छोटे मेरे,
डगमग-डगमग करते,
गिरने लगता हूँ मैं नीचे
थोड़ा-सा ही चलते।

कैसे चढ़ पाऊँगा मैं अब
इतना ऊँचा जीना?
सोच-सोचकर मुुझे अभी से
है आ रहा है पसीना।

अम्माँ, मुझे उड़ाओ / रामसिंहासन सहाय 'मधुर' Baal Kavita बाल-कविता 

 अम्माँ, आज लगा दे झूला,
इस झूले पर मैं झूलूँगा!
इस पर चढ़कर ऊपर बढ़कर
आसमान को मैं छू लूँगा!

झूला झूल रही है डाली
झूल रहा है पत्ता-पत्ता,
इस झूले पर बड़ा मजा है
चल दिल्ली, ले चल कलकत्ता।

झूल रही नीचे की धरती
उड़ चल, उड़ चल, उड़ चल,
बरस रहा है रिमझिम रिमझिम
उड़कर मैं छू-लूँ दल बादल।

वे पंछी उड़ते जाते हैं
अम्माँ तुम भी मुझे उड़ाओ,
पीगें मेरे सुगना कूटी
मेरे पिंजड़े में आ जाओ।

आओ झूलूँ, तुम्हें झुलाऊँ
नन्हे को मैं यहीं सुलाऊँ,
आ जा निंदिया, आ जा निंदिया
तुम भी गाओ मैं भी गाऊँ।

यह मूरत चुनमुनिया झूले
जंगल में ज्यों मुनिया झूले,
मेरे प्यारे तुम झूलो तो
मेरी सारी दुनिया झूले!

-साभार: बालसखा, सितंबर, 1939, प्रथम पृष्ठ

अम्मू ने फिर छक्का मारा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव Baal Kavita बाल-कविता 

 गेंद गई बाहर दोबारा,
अम्मू ने फिर छक्का मारा।

गेंद आ गई टप्पा खाई।
अम्मू ने की खूब धुनाई।
कभी गेंद को सिर पर झेला,
कभी गेंद की करी ठुकाई।
गूंजा रण ताली से सारा।
अम्मू ने फिर छक्का मारा।

कभी गेंद आती गुगली है।
धरती से करती चुगली है।
कभी बाउंसर सिर के ऊपर,
बल्ले से बाहर निकली है।
अम्मू को ना हुआ गवारा।
अम्मू ने फिर छक्का मारा।

साहस में न कोई कमी है।
सांस पेट तक हुई थमी है।
जैसे मछली हो अर्जुन की,
दृष्टि वहीं पर हुई जमी है।
मिली गेंद तो फिर दे मारा।
अम्मू ने फिर छक्का मारा।

कभी गेंद नीची हो जाए।
या आकर सिर पर भन्नाए।
नहीं गेंद में है दम इतना,
अम्मू को चकमा दे जाए।
चूर हुआ बल्ला बेचारा।
अम्मू ने जब छक्का मारा।

सौ रन कभी बना लेते हैं।
दो सौ तक पहुँचा देते हैं।
कभी कभी तो बाज़ीगर से,
तिहरा शतक लगा देते हैं।
अपने सिर का बोझ उतारा।
अम्मू ने फिर छक्का मारा।

अले, छुबह हो गई / रमेश तैलंग Baal Kavita बाल-कविता 

 अले, छुबह हो गई
आँगन बुहाल लूँ,
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ ।

कपले ये धूल भले,
मैले हैं यहाँ पले ।
ताय भी बनाना है,
पानी भी लाना है ।
पप्पू की छट्ट फ़टी, दो ताँके दाल लूँ ।

कलना है दूध गलम,
फिल लाऊँ तोछ्त नलम ।

झट छे इछतोव जला,
बलतन फिल एक चढ़ा ।
कल के ये पले हुए आलू उबाल लूँ ।

आ गया ’पलाग’ नया,
काम छभी भूल गया ।
जल्दी में क्या कल लूँ,
चुपके छे अब भग लूँ ।
छंपादक दादा के नए हाल-चाल लूँ ।

अले, छुबह हो गई! / रमेश तैलंग Baal Kavita बाल-कविता 

 अले, छुबह हो गई!
आँगन बुहाल लूँ,
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।

कपले ये धूल भले
मैले हैं यहाँ पले,
ताय भी बनाना है,
पानी भी लाना है,
पप्पू की छट्ट फटी दो ताँके दाल लूँ।
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।

कलना है दूध गलम,
फिल लाऊँ तोछ्त नलम,
झट छे इछतोव जला
बलतन फिल एक चढ़ा
कल के ये पले हुए आलू उबाल लूँ।
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।

आ गया ‘पलाग’ नया,
काम छभी भूल गया,
जल्दी में क्या कल लूँ,
तुपके छे अब भग लूँ,
छंपादक दादा के नये हाल-चाल लूँ।
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।

अले, छुबह हो गयी / रमेश तैलंग Baal Kavita बाल-कविता 

 अले, छुबह हो गयी
आँगन बहाल लूँ,
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ!

कपले ये धूल-भले,
मैले हैं यहाँ पले,
ताय भी बनाना है,
पानी भी लाना है।
पप्पू की छर्ट फटी,
दो ताँके दाल लूँ ।

कलना है दूध गलम,
फिल लाऊँ तोछत नलम,
झट छे इछतोव जला,
बलतन फिल एक चढ़ा।
कल के ये पले हुए आलू उबाल लूँ।

आ गया ‘पलाग’ नया,
काम छभी भूल गया,
जल्दी में क्या कल लूँ,
चुपके छे अब भग लूँ।
छम्पादक दादा के नये हाल-चाल लूँ।

अले, सुबह हो गई / रमेश तैलंग Baal Kavita बाल-कविता 

 अले, छुबह हो गई !
आँगन बुहाल लूँ,
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ ।

कपले ये धूल भले,
मैले हैं यहाँ पले ।
ताय भी बनाना है,
पानी भी लाना है ।
पप्पू के छ्ट्ट फटी, दो ताँके दाल लूँ ।

कलना है दूध गलम,
फिल लाऊँ तोछ्त नलम ।
झट छे इछतोव जला,
बलतन फिल एक चढ़ा ।
कल के ये पले हुए आलू उबाल लूँ ।

आ गया ’पलाग’ नया,
काम छभी भूल गया ।
जल्दी में क्या कल लूँ
चुपके छे अब भग लूँ ।
छंपादक दादा के नए हाल-चाल लूँ ।


 अश्शु भइया / श्रीकान्त जोशी Baal Kavita बाल-कविता 

  अश्शु भइया राजा है,
अश्शु भइया शेर!
जब हँसता है तो हँसता है
अपने सच्चे मन से,
जो कहता है, सो कहता है
बेहद अपनेपन से।
काम तुरत कर लेता अपना
कभी न करता देर!
अश्शु भइया राजा है,
अश्शु भइया शेर!
अश्शु भइया जब पढ़ता है
डरता नहीं जिरह से,
बात समझ में उसके आती
अक्सर इसी वजह से।
इसीलिए कक्षा में रहता
सदा सवाया सेर!
अश्शु भइया राजा है,
अश्शु भइया शेर!
रोज पहनता अपने कपड़े
अपने ही हाथों से,
और साफ रखता है उनको
स्याही के दागों से।
संग सभी के मिल कर रहता
करता ना मुठभेड़!
अश्शु भइया राजा है,
अश्शु भइया शेर!

आफत मेरी घड़ी है / प्रकाश मनु Baal Kavita बाल-कविता 

 

सुबह हो या शाम
हर वक्त हड़बड़ी है,
आफत मेरी घड़ी है!

दीवार पर टँगी है
या मेज पर खड़ी है,
हाथों में बँध गई तो
सचमुच यह हथकड़ी है!
आफत मेरी घड़ी है!

सुबह-सुबह सबका
लिहाफ खींच लेती,
शालू पे गुस्सा आता
गर आँख मीच लेती।
कहना जरा न माने,
ऐसी ये सिरचढ़ी है!
आफत मेरी घड़ी है!

तैयार होकर जल्दी
स्कूल दौड़ जाओ,
शाम को घर आकर
थोड़ा सा सुस्ताओ।
फिर पढ़ने को बिठाती,
ये वक्त की छड़ी है!
आफत मेरी घड़ी है!

आफत में है जान / रमेश तैलंग Baal Kavita बाल-कविता 

 बड़के भैया रंग-रंगीले
खूब चबाएँ पान।
मँझले भैया गप्प-गपीले
दिनभर खाएँ कान।
हमारी आफत में है जान।

हम दोनों का हुकुम बजाएँ,
रूठें जब वे, हमीं मनाएँृ,
फिर भी तेवर हमें दिखाएँ
जैसे तीर-कमान।
हमारी आफत में है जान।

ठाठ-बाट तो रखते ऐसे,
मालिक हों दुनिया के जैसे,
देते न लेकिन दस पैसे,
हैं कंजूस महान।
हमारी आफत में है जान।

आधी रात बीत गई / प्रभुदयाल श्रीवास्तव Baal Kavita बाल-कविता 

 आठ लोरियाँ सुना चुकी हूँ,
परियों वाली कथा सुनाई।

आधी रात बीत गई भैया,
अब तक तुमको नींद न आई।

थपकी दे दे हाथ थक गए,
दिया कंठ ने भी अब धोखा ।

अब तो सोजा राजा बेटा,
तू है मेरा लाल अनोखा।

चूर-चूर मैं थकी हुई हूँ,
सचमुच लल्ला राम दुहाई।

आधी रात बीत गई बीत भैया,
अब तक तुमको नींद न आई।

सोए पंख पखेरू सारे,
अलसाए हैं नभ के तारे।

करें अंधेरे पहरेदारी,
धरती सोई पैर पसारे।

बर्फ-बर्फ हो ठंड जम रही,
मार पैर मत फेंक रजाई।

आधी रात बीत गई बीत भैया,
अब तक तुमको नींद न आई।

झपकी नहीं लगी अब भी तो,
सुबह शीघ्र ना उठ पाओगे।

यदि देर तक सोए रहे तो,
फिर कैसे शाला जाओगे।

समझा-समझा हार गई मैं,
बात तुम्हें पर समझ न आई।

आधी रात बीत गई भैया
अब तक तुमको नींद न आई।

आदत बुरी / रमेश तैलंग Baal Kavita बाल-कविता 

 हर वक़्त चिढ़ना,
चिढ़कर झगड़ना—
आदत बुरी है, ये आदत बुरी।

ख़ुश रहने का है 
बस एक जादू,
ग़ुस्से पर अपने 
रखना जी क़ाबू,
पल-पल उबलना 
धम्म-धमक चलना—
आदत बुरी है, ये आदत बुरी।

धीरज नहीं हो तो 
हो जाती गड़बड़,
जीवन की गाड़ी 
करती है खड़-खड़ ,
औरों की सुनना न,
अपनी ही कहना—
आदत बुरी है, ये आदत बुरी।

आती है ये चिड़िया / श्रीप्रसाद Baal Kavita बाल-कविता 

 दाना खाने, गाना गाने, आती है ये चिड़िया
दाना खाकर मीठा गाना, गाती है ये चिड़िया
उड़कर आँगन में आती है, फिर यह छत पर जाती
फिर आँगन में जहाँ छाँह है, अपने पर फैलाती
देख-देख मुझको कैसे, मुसकाती है ये चिड़िया
दाना खाने, गाना गाने, आती है ये चिड़िया
दाना खाने, गाना गाने, आती है ये चिड़िया
नन्ही-नन्ही एक चोंच है, नन्ही-सी दो आँखें
नन्हा सिर, नन्हे पंजे हैं, नन्ही-नन्ही पाँखें
नन्हे रवि को सबसे ज्यादा भाती है ये चिड़िया
दाना खाने, गाना गाने, आती है ये चिड़िया
इसे पालकर घर में रख लूँ, कहीं नहीं फिर जाए
पर पिंजड़े में रहकर चिड़िया भला कहीं सुख पाए
मेरे घर में कभी न कुछ दुख पाती है ये चिड़िया
दाना खाने, गाना गाने, आती है ये चिड़िया
एक बार यह सुबह गीत गा, दाना खा जाती है
फिर दुपहर के बाद कहीं से, उड़कर यह आती है
फिर सूरज के छिप जाने तक, गाती है ये चिड़िया
दाना खाने, गाना गाने, आती है ये चिड़िया।

आता है कौन / श्रीप्रसाद Baal Kavita बाल-कविता 

 लाल थाल-सा जगमग-जगमग
रोज सुबह आता है कौन
पीली-पीली बड़ी सजीली
किरणें बिखराता है कौन

कली-कली खिलती है सुंदर
खिल जाते हैं फूल सभी
धरती सपना त्याग जागती
और भागती रात तभी

पेड़ों के पत्तों पर फिर
दीये से रख जाता है कौन

नदियों की लहरों में फिर
सुंदर दीपक लहराते हैैं
लाल थाल बनता है पीला
पक्षी मिलकर गाते हैं

पूरब में पल-पल ऊपर को
उठकर मुसकाता है कौन

दुनिया रंग बदल देती है
जीवन नया-नया होता
ताजा तन होता मन ताजा
कोई तारों को धोता

खुलते घाट, बाट खुलती है
ठाट बना जाता है कौन

हम उसके आते ही जगते
माँ भी कभी जगाती हैं
उसी समय को ठाकुर जी के
गाने दादी गाती हैं

बातें कामों की होती हैं
ये बातें लाता है कौन
लाल थाल-सा जगमग-जगमग
रोज सुबह आता है कौन।

आटे-बाटे / कन्हैयालाल मत्त Baal Kavita बाल-कविता 

 आटे-बाटे दही पटाके,
सोलह सोलह सबने डाटे।
डाट-डूटकर चले बजार,
पहुँचे सात समंदर पार।
सात समंदर भारी-भारी,
धूमधाम से चली सवारी।
चलते-चलते रस्ता भूली,
हँसते-हँसते सरसों फूली
फूल-फालकर गाए गीत,
बंदर आए लंका जीत।
जीत-जात की मिली बधाई,
भर-भर पेट मिठाई खाई।

आजादी उत्सव / श्रीकान्त व्यास Baal Kavita बाल-कविता 

 चल रे साथी जल्दी चल,
आजादी-उत्सव मनावै लेॅ।
वीर शहीदोॅ के यादोॅ में,
श्रद्धासुमन चढ़ावै लेॅ।

इस्कूल के अहाता में हम्में,
राष्ट्र तराना खूब गैवै।
वीर बांकुरोॅ के कुर्बानी,
साथी संगी केॅ बतलैवै।

पंद्रह अगस्त के शुभ दिन,
करवै याद सहपाठी संग।
भारत माय के रक्षा खातिर,
लड़वै हम्में खूब्बे जंग।

जे देशभक्त होलै कुर्बान,
होकरा सोॅ-सोॅ बार नमन।
छोपवै दुश्मन के गर्दन
तभी रहतै देशोॅ में अमन।

शहीद के लहू के बदला,
एक-एक दुश्मन सें लेवै।
दागवै दुश्मन पे गोली,
हम्में जवाब मुँहतोड़ देवै।

वैरी के सब टेढ़ोॅ नजर के,
होश ठिकाना लाय देवै।
दुश्मन के मूड़ी के माला,
भारत केॅ पहनाय देवै।

आज हमारी छुट्टी है / श्याम सुन्दर अग्रवाल Baal Kavita बाल-कविता 

 रविवार का प्यारा दिन है,
आज हमारी छुट्टी है ।

उठ जायेंगे क्या जल्दी है,
नींद तो पूरी करने दो ।
बड़ी थकावट हफ्ते भर की,
आराम ज़रूरी करने दो ।

नहीं घड़ी की ओर देखना,
न करनी कोई भागम- भाग ।
मनपसंद वस्त्र पहनेंगे,
आज नहीं वर्दी का राग ।

खायेंगे आज गर्म पराँठे,
और खेलेंगे मित्रों संग ।
टीचर जी का डर न हो तो,
उठती मन में खूब उमंग ।

होम-वर्क को नमस्कार,
और बस्ते के संग कुट्टी है ।
मम्मी कोई काम न कहना,
आज हमारी छुट्टी है ।

आज सवेरे / प्रकाश मनु Baal Kavita बाल-कविता 

 आज सवेरे
काम किए मैंने कुछ अच्छे!

आज सवेरे गया पार्क में
देखा मैंने फूलों को,
फूलों को देखा तो भाई
समझ गया मैं भूलों को!

तय कर डाला मस्त रहूँगा
और हँसूँगा खिल-खिलकर,
मेहनत से हर काम करूँगा
दिखलाऊँगा कुछ बनकर!

आकर होम वर्क कर डाला
फिर पौधों में पानी डाला,
पापा बोले-
देखो-देखो
ऐसे होते अच्छे बच्चे!

बैठ धूप में चिड़ियों को
देखा मैंने कथा सुनाते,
पहली बार पेड़ को देखा
हौले-हौले से मुस्काते!

सजा हुआ था आसमान में
रंगों का प्यारा मेला,
आहा, अपना जीवन भी है
सचमुच, कैसा अलबेला!

मैंने कविता एक बनाई
सुनकर झट दीदी मुस्काई,
सुंदर और बनेगी दुनिया-
काम करें हम अच्छे-अच्छे!

आज न आए / श्रीप्रसाद Baal Kavita बाल-कविता 

 आज न आए चंदा मामा
आज कहाँ पर खोए वे
क्या वे आना भूल गए हैं
या घर में ही सोए वे

तारे बैठे बाट जोहते
आसमान भी फीका है
सब कहते हैं, सुंदर चंदा
आसमान का टीका है
डाँट पड़ी क्या उनको घर में
फूट-फूटकर रोए वे

वे आते, चाँदनी चमकती
धरती अच्छी लगती तब
यह जो फैली है अँधियारी
दूर कहीं पर भ्गती तब
इतने उजले हैं, साबुन से
खूब गए हैं धोए वे

हम बच्चों के तो मामा हैं
अम्मी के हैं भाई वे
इसीलिए अक्सर आ-आकर

देते यहाँ दिखाई वे
मगर आज नभ के सागर में
क्या हैं गए डुबोए वे
आज न आए चंदा मामा
आज कहाँ पर खोए वे।

आग / श्रीप्रसाद Baal Kavita बाल-कविता 

 दादी चिल्ला करके बोली 
मुन्नू, जल्दी भाग
घर के पास बड़े छप्पर में
लगी जोर की आग

कोई पानी लेकर दौड़ा
कोई लेकर धूल
जलती बीड़ी फेंक फूस पर
किसने की यह भूल

छप्पर जला, जले दरवाजे
सब जल गया अनाज
तभी सुनी सबने घन-घन-घन
दमकल की आवाज

घंटे भर में दमकल ने आ
तुरत बुझाई आग
दमकल के ये वीर सिपाही
करते कितना त्याग

आक्सीजन और कार्बन
इनका जब हो मेल
गरमी और रोशनी देकर
आग दिखाती खेल

जाड़े में हम आग तापते
शीत न आती पास
आग बड़ी ताकत है लेकिन
करती बहुत विनाश

छुक-छुक चलती इससे रेलें
चलते हैं जलयान
चमकाती है सारे घर को
दीये की बन शान।

आकाश / संजय अलंग Baal Kavita बाल-कविता 

 

देखो कितना सुन्दर आकाश
चन्दा मामा फिलाता प्रकाश
 
टिमटिम चमकते ढ़ेर से तारे
अजब ग़जब कितने न्यारे
 
दिन होता तो सूरज आता
कितनी रोशनी भर कर लाता

नहीं करेंगें ऐसी भूल
जिससे बढ़े धुआँ और धूल
 
आकाश में बने रहें टिमटिम तारें
सुन्दर-सुन्दर प्यारे-प्यारे 

आकाश / श्रीप्रसादBaal Kavita बाल-कविता 

 नीली चादर-सा फैला है 
इसे नहीं छू पाओगे
लेकिन इस खाली गोले की
सभी जगह तुम पाओगे

जब सूरज पूरब में आता
लाल रंग रँग जाता है
और शाम को जैसे सोना
पश्चिम में लहराता है

तारों से आकाश भरा है
चाँद चमकता आकर के
सूरज हर दिन मुसकाता है
किरण-किरण बिखरा करके

आसमान में चिड़ियाँ उड़कर
दूर कहाँ तक जाती हैं
चलती हवा हमेशा गुमसुम
और आँधियाँ आती हैं

बादल आ आकाश गोद में
जल ही जल बरसाता है
इंद्रधनुष सातों रंगों को
खिलखिलाकर बिखराता है

सूरज की रोशनी चमककर
इसको करती है नीला
मगर रात में कब रहता है
दिन के जैसा चमकीला।

आकाश / श्रीनाथ सिंह Baal Kavita बाल-कविता 

 जिसमे अपनी नाव चलाता,
दिन भर सूरज चमकीला।
और रात में तारों को ले,
चन्द्र जहाँ करता लीला।
जिसकी गोदी में शिशु हाथी,
सा फिरता बादल गीला।
हिलती हरियाली के ऊपर,
छाया जो नीला नीला।
वह ही है आकाश बालकों,
जिसका है कुछ ओर न छोर।
गर्व बड़प्पन का हो जिसको,
पहले देखे उसकी ओर।

आकाश / बालकवि बैरागी Baal Kavita बाल-कविता 

 ईश्वर ने आकाश बनाया
उसमें सूरज को बैठाया
अगर नहीं आकाश बनाता
चाँद-सितारे कहाँ सजाता?
कैसे हम किरणों से जुड़ते?
ऐरोप्लेन कहाँ पर उड़ते?

आओ, दीप चलाएँ / प्रकाश मनु Baal Kavita बाल-कविता 

 खिली-खिली मुसकानें लेकर
आओ, दीप जलाएँ,
फुलझड़ियों के गाने लेकर
आओ, दीप जलाएँ।

एक दीप ऊँची मुँडेर पर
एक दीप देहरी पर,
एक दीप झिलमिल आँगन में
एक गली में बाहर।

दीपक एक जहाँ खेला करता,
है चुनमुन भैया,
दीपक एक जहाँ नन्ही की
होती पाँ-पाँ पैयाँ।

एक दीप अँधिययारी आँखों
का बन जाए तारा,
एक दीप झोंपड़ियों में भी
फैलाए उजियारा।

एक दीप-हाँ, याद आ गया
ठीक द्वार के आगे,
ताकि प्यार ही प्यार रहे बस
सारी नफरत भागे।

किस्से जहाँ सुनाती थी
बूढ़ी काकी हँस-हँसकर,
दीपक एक वहाँ भी रखना
थोड़ा शीश झुकाकर।

एक दीप ऐसा जो सबको
नेह-प्यार सिखलाए
आँधी-तूफानांे में जाने
का साहस बन जाए।

एक दीप इसलिए कि मन में
संशय कभी उगे ना,
एक दीप इसलिए कि भय का
दानव कभी जगे ना।

दीप-दीप से मिलकर होंगी
उजियारे की पाँतें,
दीपों की झिलमिल कतार-सी
होंगी मीठी बातें।

आओ, दीप जलाएँ लेकर
नई सुबह के सपने,
हम सबके हो जाएँ,
धरती के सुख-दुख हों अपने!

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