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Baal Kavita बाल-कविता लोकप्रिय बाल-कविताएँ Kid poem Child poem bachhon ki kavita


 Baal Kavita  बाल-कविता लोकप्रिय बाल-कविताएँ  Kid poem Child poem bachhon ki kavita


अक्की-बक्की / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना  Baal Kavita  बाल-कविता

 अक्की-बक्की करें तरक्की,
गेहूँ छोड़ के बोएँ मक्की।
मक्की लेकर भागें चक्की,
देखे बुढ़िया हक्की-बक्की
नक्की-झक्की पूरी शक्की!

अक्कड़-बक्कड़ / रत्नप्रकाश शील  Baal Kavita  बाल-कविता

 अक्कड़-बक्कड़,
लाल बुझक्कड़!
कितना पानी बीच समंदर,
कितना पानी धरती अंदर!
आसमान में कितने तारे,
वन में पत्ते कितने सारे।
दाएँ बाएँ देखें अक्कड़,
ऊपर-नीचे देखे बक्कड़!
अक्कड़-बक्कड़,
लाल बुझक्कड़!

लाल बुझक्कड़, जेब टटोलें,
फिर जने क्या, खुद से बोले-
अरे हो गया यह सब कैसे,
कहाँ गए पॉकेट के पैसे!
अकल नदारद, बिल्कुल फक्कड़,
अक्ल नहीं तो सूखे लक्कड़!
अक्कड़-बक्कड़,
लाल बुझक्कड़!

अक्कड़-बक्कड़ / दीनदयाल शर्मा  Baal Kavita  बाल-कविता

 अक्कड़-बक्कड़ बोकरी
बाबाजी की टोकरी ।

टोकरी से निकला बंदर
बंदर ने मारी किलकारी
किलकारी से हो गया शोर
शोर मचाते आ गए बच्चे
बच्चे सारे मन के कच्चे

कच्चे-कच्चे खा गए आम
आम के आम गुठली के दाम
दाम बढ़े हो गई महंगाई
महंगाई में पड़े न पार
पार करें हम कैसे नदिया
नदिया में नैया बेकार

बेकार भी हो गई पेटी
पेटी में ना पड़ते वोट
वोट मशीनों में है बटन
बटन दबाओ पड़ गए वोट
वोट से बन गए सारे नेता
नेता भी लगते अभिनेता

अभिनेता है मंच पे सारे
सारे मिलकर दिखाते खेल
खेल देखते हैं हम लोग
लोग करें सब अपनी-अपनी
अपनी डफली अपना राग

राग अलापें अजब-गजब हम
हम रहते नहीं रलमिल सारे
सारे मिलकर हो जाएँ एक
एक-एक मिल बनेंगे ताकत
ताकत सफलता लाएगी
लाएगी खुशियाँ हर घर-घर
घर-घर दीप जलाएगी ।

अक्कड़-बक्कड़ / कन्हैयालाल मत्त  Baal Kavita  बाल-कविता

 अक्कड़-बक्कड़, लोहा-लक्कड़
उस पर बैठे फंटू-फक्कड़,
फंटू-फक्कड़, बड़े घुमक्कड़
लाल-बुझक्कड़ पूरे नंग,
फंटू-फक्कड़ उनसे तंग।

अक्कड़ मक्कड़ / भवानीप्रसाद मिश्र  Baal Kavita  बाल-कविता

 अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़,
दोनों मूरख, दोनों अक्खड़,
हाट से लौटे, ठाठ से लौटे,
एक साथ एक बाट से लौटे।

बात-बात में बात ठन गयी,
बांह उठीं और मूछें तन गयीं।
इसने उसकी गर्दन भींची,
उसने इसकी दाढी खींची।

अब वह जीता, अब यह जीता;
दोनों का बढ चला फ़जीता;
लोग तमाशाई जो ठहरे 
सबके खिले हुए थे चेहरे!

मगर एक कोई था फक्कड़,
मन का राजा कर्रा - कक्कड़;
बढा भीड़ को चीर-चार कर
बोला ‘ठहरो’ गला फाड़ कर।

अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़,
दोनों मूरख, दोनों अक्खड़,
गर्जन गूंजी, रुकना पड़ा,
सही बात पर झुकना पड़ा!

उसने कहा सधी वाणी में,
डूबो चुल्लू भर पानी में;
ताकत लड़ने में मत खोओ
चलो भाई चारे को बोओ!

खाली सब मैदान पड़ा है,
आफ़त का शैतान खड़ा है,
ताकत ऐसे ही मत खोओ,
चलो भाई चारे को बोओ।

सुनी मूर्खों ने जब यह वाणी
दोनों जैसे पानी-पानी
लड़ना छोड़ा अलग हट गए
लोग शर्म से गले छट गए।

सबकों नाहक लड़ना अखरा
ताकत भूल गई तब नखरा
गले मिले तब अक्कड़-बक्कड़
खत्म हो गया तब धूल में धक्कड़

अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़
दोनों मूरख, दोनों अक्खड़।

अक्कड़ बक्कड़ / श्रीप्रसाद  Baal Kavita  बाल-कविता

 अक्कड़ बक्कड़ बंबे भो 
अस्सी नब्बे पूरे सौ
सौ चूहों ने मिलकर बिल्ली
एक पकड़ ली जब
चारों पैर बाँध रस्सी में
खूब जकड़ ली जब
चले डुबाने उसे नदी में
रोई अब बिल्ली
खाकर कसम कहा रक्खूँगी
मैं सबसे मिल्ली

हर चूहे के पैर छुए फिर
माँगी जब माफी
हाथ जोड़कर विनती भी की
चूहों से काफी
तब चूहों ने छोड़ा उसको
भागी अब बिल्ली
सब कहते हैं जाकर पहुँची
वह सीधे दिल्ली

अब वह दिल्ली में करती है
हरदम शैतानी
उसे देखकर के आई हैं
कल मेरी नानी
अक्कड़ बक्कड़ बंबे भो
अस्सी नब्बे पूरे सौ।

अकड़म-बकड़म / दिविक रमेश  Baal Kavita  बाल-कविता

 अकड़म-बकड़म ठंडम ठा।
याद आ गई माँ की माँ।
सूरज, तू जल्दी से आ।
धूप गुनगुनी ढ़ोकर ला।।
अकड़म-बकड़म ठंडम ठा।
ऐसे में मत कहो नहा।
सूरज, तू जल्दी से आ।
आ बिस्तर से हमें उठा।।
अकड़म-बकड़म ठंडम ठा।
गरमागरम जलेबी खा।
सूरज, तू जल्दी से आ।
आ बुढ़िया की जान बचा।।
अकड़म-बकड़म ठंडम ठा।
जा सर्दी अपने घर जा।।

अकड़ / दीनदयाल शर्मा  Baal Kavita  बाल-कविता

 अकड़-अकड़ कर
क्यों चलते हो 
चूहे चिंटूराम,
ग़र बिल्ली ने 
देख लिया तो 
करेगी काम तमाम,

चूहा मुक्का तान कर बोला
नहीं डरूंगा दादी
मेरी भी अब हो गई है
इक बिल्ली से शादी।

अंधकार की नहीं चलेगी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव  Baal Kavita  बाल-कविता

 मां बोली सूरज से बेटे, सुबह हुई तुम अब तक सोये,
देख रही हूं कई दिनों से, रहते हो तुम खोये खोये।

जब जाते हो सुबह काम पर, डरे डरे से तुम रहते हो,
क्या है बोलो कष्ट तुम्हें प्रिय,साफ़ साफ़ क्यों न कहते हो।

सूरज बोला सुबह सुबह ही, कोहरा मुझे ढांप लेता है,
निकल सकूं कैसे चंगुल से, कोई नहीं साथ देता है।

मां बोली हे पुत्र तुम्हारा, कोहरा कब है क्या कर पाया,
उसके झूठे चक्रव्यूह को, काट सदा तू बाहर आया।

कवि कोविद बच्चे बूढ़े तक, लेते सदा नाम हैं तेरा,
कहते हैं सूरज आया तो, भाग गया है दूर अंधॆरा।

निश्चित होकर कूद जंग में, विजय सदा तेरी ही होगी,
तेरे आगे अंधकार या, कोहरे की न कभी चलेगी।

अंतरिक्ष की सैर / त्रिलोक सिंह ठकुरेला  Baal Kavita  बाल-कविता

 नभ के तारे कई देखकर
एक दिन बबलू बोला।
अंतरिक्ष की सैर करें माँ
ले आ उड़न खटोला॥

कितने प्यारे लगते हैं
ये आसमान के तारे।
कौतूहल पैदा करते हैं
मन में रोज हमारे॥

झिलमिल झिलमिल करते रहते
हर दिन हमें इशारे।
रोज भेज देते हैं हम तक
किरणों के हरकारे॥

कोई ग्रह तो होगा ऐसा
जिस पर होगी बस्ती।
माँ,बच्चों के साथ वहाँ
मैं खूब करुँगा मस्ती॥

वहाँ नये बच्चों से मिलकर
कितना सुख पाऊँगा।
नये खेल सिखूँगा मैं,
कुछ उनको सिखलाऊँगा॥

 अंखियों में आ जा निंदिया / अलका सिन्हा  Baal Kavita  बाल-कविता

 हो के चांदनी पे तू सवार
अंखियों में आ जा निंदिया...
खूब पढ़ेगी, खूब बढ़ेगी
जैसे कोई चढ़ती बेल,
हर मुश्किल से टकराएगी
जीतेगी जीवन का खेल।
तू पा लेगी वो ऊंचाई
हैरत से देखे दुनिया
अंखियों में आ जा निंदिया...
धीरे-धीरे झूला झूले
जा पहुंचेगी अम्बर पार,
उड़ने वाला घोड़ा लेक
आएगा एक राजकुमार।
डोली ले जाएगा एक दिन
सजकर बैठी है गुड़िया।
अंखियों में आ जा निंदिया...


अंकल जी / सूर्यकुमार पांडेय  Baal Kavita  बाल-कविता

 

घर में आये खटर-पटर,
दाढ़ी वाले अंकल जी।
ऊँची एड़ी के जूते,
क्या कहने हैं इनकी चाल?
आँखों पर धूपी चश्मा,
सिर पर लम्बे-लम्बे बाल।

बातें करते गिटिर-पिटिर,
बड़े निराले अंकल जी।

फिल्म कौन-सी अच्छी है,
बदल रही किसकी सरकार?
कितने रन से टीम कौन-सी 
जीत रही है अबकी बार।
पापा से बतियाते दिन भर
बैठे-ठाले अंकल जी।

अंक में झूला / दीनदयाल शर्मा  Baal Kavita  बाल-कविता

 मम्मी मुझको अंक में लेना,
अंक में लेकर झूला देना

भूख लगे तो मुझको मम्मी,
मीठा मीठा दूध पिलाना.

रूठूँ तो तुम मुझे मनाना,
झूला मुझको लगे सुहाना.

मैं रोऊँ तो लाड लडाना,
खेलूं तो मुझे खेल खिलाना.

कैसी बातें करूँ मैं किससे,
मम्मी तुम मुझको बतलाना .

रात को सोने से पहले तुम,
नई कहानी मुझे सुनाना.

जब मुझको निंदिया आये तो
लोरी गाकर मुझे सुलाना.

ये बातें तुम भूल न जाना,
नहीं चलेगा कोई बहाना.

भूल गई तो करूँ शिकायत, 
मेरे प्यारे नानी नाना..

अंक गणित / दीनदयाल शर्मा  Baal Kavita  बाल-कविता

 अंग्रेज़ी, हिन्दी, सामाजिक
और विज्ञान समझ में आए
अंकगणित जब करने बैठूँ 
सारा दिमाग जाम हो जए ।

सरल जोड़ भाग गुणा घटाओ
कर लेता हूँ जैसे-तैसे
घुमा-घुमा कर पूछे कोई
उसको हल करूँ मैं कैसे ?

इतना बड़ा हो गया हूँ मैं
अंकगणित में अब भी ज़ीरो
बाकी सारे काम करूँ झट
दुनिया माने मुझको हीरो ।।

अखाड़ा / आरसी प्रसाद सिंह  Baal Kavita  बाल-कविता

 बहुत मशहूर दुनिया में हमारा यह अखाड़ा है,
भयंकर भीम भी आकर यहाँ पढ़ता पहाड़ा है।

बहादुर वीर रुस्तम से यहाँ सुहराब लड़ता है,
यहाँ बलवान गामा है जिविस्को भी पछड़ता है।
सितारे हिंद है कोई यहाँ वनराज है कोई,
हिरण पर शेर है कोई बया पर बाज़ है कोई।
यहाँ खरगोश ने धर कर शिकारी को पछाड़ा है,
बहुत मशहूर दुनिया में हमारा यह अखाड़ा है।

हमारे इस अखाड़े में कन्हैयालाल लड़ते हैं,
बहुत से भूत लड़ते हैं, बहुत बेताल लड़ते हैं।
बहुत चौबे, बहुत छब्बे, बहुत दुब्बे लपटते हैं,
यहाँ चूहे मिलाकर हाथ, बिल्ली पर झपटते हैं।
नदी की एक मछली से यहाँ घड़ियाल हारा है,
बहुत मशहूर दुनिया में हमारा यह अखाड़ा है!

अगड़म-बगड़म / प्रकाश मनु  Baal Kavita  बाल-कविता

 
अगड़म-बगड़म गए बाजार
वहाँ से लाए मोती चार,
दो मोती थे टूटे-फूटे
बाकी दो हाथों से छूटे,
अगड़म-बगड़म दोनों रूठे!

आगे आया नया बाजार
पीं-पीं बाजा, सीटी चार,
लेकर बोले अगड़म-बगड़म-
लिख लो, यह सब रहा उधार
पैसे कल ले लेना यार!

अगड़म उछल-उछलकर चलता
बगड़म फिसल-फिसलकर बढ़ता,
पीछे पड़ गए कुत्ते चार-
कूद गए पानी में दोनों,
झटपट पहुँचे नदिया पार!

अगड़म रोता इधर खड़ा है
बगड़म भी उखड़ा-उखड़ा है,
अब ना पीं-पीं, अब ना बाजा
फूटा घुटना, फूट गया सिर-
टूट गया किस्से का तार!

अगडू़-झगडू़ / होरीलाल शर्मा 'नीरव'  Baal Kavita  बाल-कविता

 आजू-राजू दोनों
दो-दो गुब्बारे ले आए

माँ को पास बिठाकर
अगडू़-झगडू़ दो बनवाए।

पेट बड़ा-सा, छोटा-सा सिर
बिल्कुल ढीलम-ढालू,

जैसे लाल टमाटर पर हो
रक्खा छोटा आलू।

निकली तब तक हवा पिचककर
गिरे भूमि पर झगडू़,

रहे देखते बड़ी देर तक
आँखें फाड़े अगडू़।

अगर / अरविंद बख्शी  Baal Kavita  बाल-कविता

 अगर उन्हें आवाज मिले तो
क्या बोलेंगे फूल,
सबसे पहले वह बोलेंगे
हमें तोड़ना भूल।

अगर उन्हें उड़ना आ जाता
काँटा क्या कर पाते,
मधुमक्खी सा डंक चुभोकर
सबको मज़ा चखाते।

अगर भागना उनको आता
पौधे ये कर जाते,
आता हुआ देख दुश्मन को 
झट से रेस लगाते।

अगर / रमापति शुक्ल  Baal Kavita  बाल-कविता

 खूब बड़ा-सा अगर कहीं,
संदूक एक मैं पा जाता।
जिसमें दुनिया भर का चिढ़ना,
गुस्सा आदि समा जाता।
तो मैं सबका क्रोध, घूरना,
डाँट और फटकार सभी।
छीन-छीनकर भरता उसमें,
पाता जिसको जहाँ जभी।
तब ताला मजबूत लगाकर,
उसे बंद कर देता मैं।
दुनिया के सबसे गहरे
सागर में उसे डुबा आता
तब न किसी बच्चे को कोई-
कभी डाँटता, धमकाता!

अगर / श्रीप्रसाद  Baal Kavita  बाल-कविता

 अगर नहीं यह सूरज होता
तो होता अँधियारा
अगर न आता चाँद, न लगता
आसमान यह प्यारा

अगर नहीं ये तारे होते
चमकीले-चमकीले
आसमान में कहाँ चमकते
झिलमिल नीले-पीले

और अगर ये रंगबिरंगे
फूल न खिलते होते
तो क्या होता, हम फूलों की
यह सुंदरता खोते

बेलें होतीं नहीं, न होते
पेड़ झूमने वाले
पर्वत होते नहीं कहीं
आकाश चूमने वाले

नदियाँ, ताल और झरना भी
नहीं एक भी होता
निर्मल पानी का पत्थर से
कहीं न बहता सोता

अगर नहीं होते इतने पशु
पक्षी कहीं न गाते
तो हम कैसे इस दुनिया में
अपना मन बहलाते

इस दुनिया में सब-कुछ ही है
लगती इससे प्यारी
कौन देख पाता वरना ये
सुंदर दुनिया सारी।

अगर कहीं / प्रकाश मनु  Baal Kavita  बाल-कविता

 आसमान में बजे बाँसुरी
धरती सारी झूमे-गाए,
अगर कहीं ऐसा हो भाई,
सचमुच खूब मजा आ जाए!

तारे धरती पर आ जाएँ
चाँद उतर आए आँगन में,
नन्हे-नन्हे सूरज पैदा
हों पृथ्वी पर, वन-उपवन में।

पेड़ों पर पैसे लगते हों
रसगुल्ले हों डाली-डाली,
जगह-जगह नदियाँ-पर्वत हों
हो सब धरती पर हरियाली।

चंद्रलोक में पैदल जाएँ
सूर्यलोक की सैर करें हम,
वहाँ-वहाँ पर घूमें-घामें
जहाँ-जहाँ हो बढ़िया मौसम।

फूलों जैसी हों मुसकानें
नदी सरीखा हर दिल गाए,
अगर कहीं ऐसा हो भाई,
सचमुच, सबके मन को भाए!

अगर नहीं मैं होता / पीयूष वर्मा  Baal Kavita  बाल-कविता

 इस बेढंगी-सी दुनिया में
अगर नहीं मैं होता,
सोचो, दुनिया कैसी लगती
और मेरा क्या होता?

दूर किसी ग्रह के कोने में
बैठा तब मैं रोता,
अथवा कहीं अँधेरे में, मैं
पड़ा-पड़ा तब सोता।

अध्यापक तब कक्षा में फिर-
मुर्गा किसे बनाते,
और बनाकर मुर्गा, किससे
कुकडूँ-कूँ करवाते?

माँ किसके तब कान खींचती
पापा कब दुलराते,
दादा-दादी किसे प्यार से
अपने पास बुलाते?
तुम बच्चों की खातिर तब फिर-
लिखता कौन कहानी,
और सुनाता गीत कौन तब
सुंदर और लासानी।

लिख-लिखकर तब कौन सैकड़ों
पन्ने काले करता
उन पन्नों से संपादक का
दफ्तर कैसे भरता।

अगर पेड़ में रुपये फलते / प्रभुदयाल श्रीवास्तव  Baal Kavita  बाल-कविता

 अगर पेड़ में रुपये फलते-
टप् टप् टप् टप् रोज टपकते
अगर पेड़ में रुपये फलते
सुबह पेड़ के नीचे जाते
ढ़ेर पड़े रुपये मिल जाते

थैलों में भर भर कर रुपये
हम अपने घर में ले आते
मूंछों पर दे ताव रोज हम‌
सीना तान अकड़के चलते

कभी पेड़ पर हम चढ़ जाते
जोर जोर से डाल हिलाते
पलक झपकते ढेरों रुपये
तरुवर के नीचे पुर जाते
थक जाते हम मित्रों के संग‌
रुपये एकत्रित करतॆ करते

एक बड़ा वाहन ले आते
उसको रुपयों से भरवाते
गली गली में टोकनियों से
हम रुपये भरपूर लुटाते
वृद्ध गरीबों भिखमंगों की
रोज रुपयों से झोली भरते

निर्धन कोई नहीं रह पाते
अरबों के मालिक बन जाते
होते सबके पास बगीचे
बड़े बड़े बंगले बन जाते
खाते पीते धूम मचाते
हम सब मिलकर मस्ती करते

अगर सुबह भी / श्रीप्रसाद  Baal Kavita  बाल-कविता

 सूरज की किरणें आती हैं
सुंदर कलियाँ खिल जाती हैं
अंधकार सब खो जाता है
सब जग सुंदर हो जाता है

चिड़ियाँ गाती हैं मिल-जुलकर
बहते हैं उनके मीठे स्वर
ठंडी-ठंडी हवा सुहानी
चलती है जैसे मस्तानी

यह प्रातः की सुख-बेला है
धरती का सुख अलबेला है
नई ताजगी, नई कहानी
नया जोश पाते हैं प्राणी

खो देते हैं आलस सारा
और काम लगता है प्यारा
सुबह भली लगती है उनको
मेहनत प्यारी लगती जिनको

मेहनत सबसे अच्छा गुण है
आलस बहुत बड़ा दुर्गुण है
अगर सुबह भी अलसा जाए
तो क्या जग सुंदर हो पाए।

अगर-मगर / निरंकार देव सेवक  Baal Kavita  बाल-कविता

 अगर मगर दो भाई थे,
लड़ते खूब लड़ाई थे।
अगर मगर से छोटा था,
मगर अगर से खोटा था।
अगर मगर कुछ कहता था,
मगर नहीं चुप रहता था।
बोल बीच में पड़ता था,
और अगर से लड़ता था।
अगर एक दिन झल्लाया,
गुस्से में भरकर आया।
और मगर पर टूट पड़ा,
हुई खूब गुत्थम-गुत्था।
छिड़ा महाभारत भारी,
गिरीं मेज-कुर्सी सारी।
माँ यह सुनकर घबराई,
बेलन ले बाहर आई!
दोनों के दो-दो जड़कर,
अलग दिए कर अगर-मगर।
खबरदार जो कभी लड़े,
बंद करो यह सब झगड़े।
एक ओर था अगर पड़ा,
मगर दूसरी ओर खड़ा।

-साभार: बालसखा, मई, 1946, 169

अच्छा मुन्ना, गंदा मुन्ना / श्रीप्रसाद  Baal Kavita  बाल-कविता

 अच्छा मुन्ना हरदम हँसता
फूल हँसी के बिखराता है
गंदा मुन्ना तो बस हरदम
ऊँ-ऊँ रोए ही जाता है

अच्छा मुन्ना सजाधजा है
सुंदर से कपड़े पहने हैं
गंदा मुन्ना मैले कपड़े
पहना खड़ा है, क्या कहने हैं

अच्छा मुन्ना उठा सुबह ही
पढ़ने बैठा ध्यान लगाकर
गंदा मुन्ना उठा देर से
आठ बजे रोकर चिल्लाकर

अच्छा मुन्ना प्रथम रहा था
अपनी कक्षा में पढ़ने में
गंदा मुन्ना खुद कहता है
मुश्किल है कक्षा चढ़ने में

अच्छा मुन्ना आज मिला था
भले को रस्ता बतलाते
गंदा मुन्ना मुझे मिला था
राहगीर को खूब चिढ़ाते

अच्छा मुन्ना गाना गाता
और सुनाता कविता प्यारी
गंदा मुन्ना बक-बक करता
बात बुरी करता है सारी

अच्छा मुन्ना खेलों में भी
सदा कमाल दिखाता अपना
गंदा मुन्ना तो ऊधम का
केवल देखा करता सपना

अच्छा मुन्ना मदद करेगा
कोई उससे देखे कहकर
गंदा मुन्ना बात मदद की
सुनके चलता मुँह बिचकाकर

अच्छा मुन्ना बात मानता
माँ की, पापा जी की, सबकी
गंदा मुन्ना छोड़ चुका है
ऐसी अच्छी आदत कब की

अच्छा मुन्ना मिलकर रहता
सबका ही आदर करता है
गंदा मुन्ना तो ऐसा है
कौन नहीं उससे डरता है

अच्छा मुन्ना अपनी दादी से
रोज कहानी सुनता है
गंदा मुन्ना, उससे तो
घर भर दुखियाकर सिर धुनता है

अच्छा मुन्ना भी लड़का है
लड़का ही गंदा मुन्ना है
तुम बोलो अब इन दोनों
में से तुमको किसको चुनना है।

अच्छा लगता / श्रीप्रसाद  Baal Kavita  बाल-कविता

 मुझको कौवा अच्छा लगता
काँव-काँव करने आता है
मुझको कुत्ता अच्छा लगता
दरवाजे पर आ जाता है

मुझको बिल्ली अच्छी लगती
करती रहती क्याऊँ म्याऊँ
जैसे कहती है, खाना दो
तब फिर और कहीं मैं जाऊँ

मुझको हाथी अच्छा लगता
वह कितना भारी होता है
मुझको अजगर अच्छा लगता
जो दिनभर केवल सोता है

मुझको कोयल अच्छी लगती
वह कितना मीठा गाती है
मुझको चिड़िया अच्छी लगती
वह गाती-गाती आती है

मुझको अच्छे लगते सारस
लंबी-लंबी टाँगों वाले
मुझको अच्छे लगते बगुले
दिन भर ध्यान लगाने वाले

अच्छे लगते सारे पक्षी
अच्छे लगते हैं पशु सारे
अच्छे लगते बाग-बगीचे
वृक्षों वाले वन हरियारे

किसने देखी दुनिया सारी
किसने देखी सारी धरती
पर अपनी चीजों से धरती
सबके मन में खुशियाँ भरती।

अच्छा ही अच्छा / सुकुमार राय  Baal Kavita  बाल-कविता

 इस दुनिया में सब है अच्छा
असल भी अच्छा नक़ल भी अच्छा

सस्ता भी अच्छा महँगा भी अच्छा
तुम भी अच्छे मै भी अच्छा

वहां गानों का छन्द भी अच्छा
यहाँ फूलों का गन्ध भी अच्छा

बादल से भरा आकाश भी अच्छा
लहरों को जगाता वातास भी अच्छा

ग्रीष्म अच्छा वर्षा भी अच्छा
मैला भी अच्छा साफ़ भी अच्छा

पुलाव अच्छा कोरमा भी अच्छा
मछली परवल का दोरमा भी अच्छा

कच्चा भी अच्छा पका भी अच्छा
सीधा भी अच्छा टेढ़ा भी अच्छा

घण्टी भी अच्छी ढोल भी अच्छा
चोटी भी अच्छा गंजा भी अच्छा

ठेला गाडी ठेलना भी अच्छा
खस्ता पूरी बेलना भी अच्छा

गिटकीड़ी गीत सुनने में अच्छा
सेमल रूई धुनने में अच्छा

ठण्डे पानी में नहाना भी अच्छा
पर सबसे अच्छा है ....

सूखी रोटी और गीला गुड़ 

मूल बांग्ला से अनूदित

अच्छा होता / प्रदीपशुक्ल  Baal Kavita  बाल-कविता

 अच्छा होता चाँद हमारे
घर के ऊपर होता
कभी-कभी रातों में उसका
हाथ पकड़ कर सोता

आसमान की सारी बातें
वो मुझको बतलाता
रूठ गए तारों के किस्से
गा कर मुझे सुनाता

छुट्टी के दिन मुझको लेकर
दूर गगन में जाता
अन्तरिक्ष के नीले वन में
सैर मुझे करवाता

पास किसी तारे के घर में
रुक कर खाना खाते
खा पी कर जल्दी से वापस
अपने घर आ जाते

बिजली जाती घर के अन्दर
उसको हम ले आते
और चाँदनी में हम सारे
खुल कर हँसते-गाते

एक झिंगोला सिलवा देते
जाड़ों में जब रोता
अच्छा होता चाँद हमारे
घर के ऊपर होता

अच्छा होता / श्रीप्रसाद  Baal Kavita  बाल-कविता

 बच्चे बोले, प्यारी नानी
हमें सुनाओ एक कहानी
मगर कहानी नई-नई हो
कभी नहीं जो कही गई हो

मनभाई हो नई कहानी
शुरू करो जब प्यारी नानी
प्यारे बच्चो, नानी बोली
कानों में मिसरी-सी घोली

बिलकुल नई कहानी सुंदर
सुनो सभी बच्चो तुम मिलकर
काफी पहले धरती सारी
बनी हमारी माता प्यारी
हम पैदा होते धरती पर
बढ़ते फिर हम खेल-खेलकर
इसीलिए माता कहलाती
इसीलिए यह पूजी जाती

पहले धरती पर आए वन
पौधे खड़े हो गए बनठन
ऊँचे-नीचे पेड़ खड़े थे
पेड़ कई तो बहुत बड़े थे
फूल और फल भरे हुए थे
मुकुट फूल के धरे हुए थे
वन थे घ्ज्ञने, घनी हरियाली
लगते थे वन शोभाशाली

आगे नानी बोलीं बेटे
वन थे शोभा सभी समेटे
तुम्हें पता है बादल आते
झम-झम-झम पानी बरसाते
पर वन के कारण आते हैं
वृक्ष बादलों को लाते हैं
घने-घने वन, गहरे बादल
बरसाते बादल गहरा जल
तब भारी बरसा आती थी
धरती जल से भर जाती थी
मगर तभी फिर मानव आया
बना-बना घर गाँव बसाया

काटे वन मेंटी हरियाली
फिर भी थी जग में खुशहाली
बढ़ते चले गए फिर मानव
वन के लिए बने वे दानव
काट-काटकर पेड़ गिराए
पेड़ सभी रोए-चिल्लाए
खिले फूल सूखे मुरझाकर
सूखे सारे फल डाली पर
पर मानव को दया न आई
पेड़ों की हर पाँति गिराई
घर पर घर बनते जाते थे
वृक्ष देखकर भय खाते थे
उधर हो रहे थे कम बादल
कम होता जाता वर्षा जल
मौसम में आई गरमाई
बरफ पिघल धरती पर आई

जब जाड़े के दिन आते थे
लोग बरफ गिरती पाते थे
बच्चे खेल बरफ से करते
अब न बरफ झोली में भरते

और बने घर, नगर बने फिर
टूटे पर्वत, वृक्ष कटे फिर
सबने वृक्ष उजाड़े वन के
काम किए सब अपने मन के
कलें, कारखाने फिर आए
वृक्ष और वन गए सताये
गरमी बढ़ी, हुई कम बरसा
धरती का मन कितना तरसा

हम गरमी से घबड़ाते हैं
जो कुछ किया वही पाते हैं
वन खोए, हरियाली खोई
फूट-फूटकर धरती रोई
बदला मौसम, बढ़ी रुखाई
हरियाली वह पुनः न आई
बरफ नहीं है वह पर्वत पर
जो पहले खिलती थी ऊपर

हमने स्वयं कुल्हाड़ी मारी
हानि हुई है कितनी भारी
बच्चो, अब चेतें हम आगे
अब हम सोच-सोचकर जागे
धरती पर रोपें फिर से वन
हरियाली है अपना जीवन
हरियाली से भरता है मन
पेड़-पेड़ है धरती का धन
वन होंगे, बरसा आएगी
फिर हरियाली मुसकाएगी
बादल फिर गहरे आएँगे
काफी पानी बरसाएँगे

घने-घने वन, पर्वत सुंदर
सूरज मुसकाएगा ऊपर
खाओ कसम वृक्ष उपजाएँ
फिर पहले की शोभा लाएँ
खतम हुई बस यहीं कहानी
तब बच्चों से बोली नानी
नई कहानी तुम्हें सुनाई
मगर कहो क्या तुमको भाई
बच्चों ने सचमुच यह जाना
अच्छा होता पेड़ लगाना।

अच्छी बुद्धि / दिविक रमेश  Baal Kavita  बाल-कविता

 छिः चिड़िया, छिः गैया कैसी
रोज़ रोज़ नंगी ही रहतीं।
सोचे मुनिया बॆठी बॆठी
मम्मी इनकी कुछ न कहतीं?

जहां तहां गोबर कर देती
लाज गाय को कब है आती
चिड़िया भी ऐसी ही होती
बाथरूम में कभी न जाती।

आखिर पापा से ही पूछा
पापा ने यह बात बताई
बेटी इनको हम जैसी तो
अच्छी बुद्धि मिल ना पाई।

अच्छी-अच्छी बातें सुन / गिरीश पंकज  Baal Kavita  बाल-कविता

 अच्छी-अच्छी बातें सुन
टिक, टिक, टिक, टिक
टुन, टुन, टुन ।
अच्छी-अच्छी बातें सुन ।

जो बच्चें पढ़ते हैं भैया,
आगे ही बढ़ते हैं भैया ।
वही सदा रहते हैं पीछे,
जो सबसे लड़ते हैं भैया ।
बात है सच्ची, इसको गुन ।

टिक, टिक, टिक, टिक
टुन, टुन, टुन ।
अच्छी-अच्छी बातें सुन ।

क ,ख, ग, घ बोलो जी,
खेलो-कूदो-डोलो जी ।
रोज सुबह जल्दी उठ जाओ,
रात को जल्दी सो लो जी ।
देखो कहता है चुन-मुन ।

टिक, टिक, टिक, टिक
टुन, टुन, टुन ।
अच्छी-अच्छी बातें सुन ।

अजब कहानी / श्रीकान्त व्यास  Baal Kavita  बाल-कविता

 भालू भाय नाचै ता-थैय्या,
कोयल नम्बर एक गवैया।

बानर के देह बड़ा लचीला,
टहनी केॅ समझोॅ हुनकोॅ झूला।

पत्ता के खर-खर सुनी भागै,
डरपोक गीदड़ जी कहलावै।

कठफोड़ां करै गाछीं छेद,
तनियोॅ नै स्वीकारै खेद।

चतुर मूसा के अजब कहानी,
एक दिन बेमार पड़लै नानी।

दौड़तें भागलै नानी घोॅर,
लागै हिनका बिलाय सें डोॅर।

साँप हमेशा दौ में रहै छै,
दोसरा घर में राज करै छै।

बेंग-मूसोॅ छै प्यारोॅ भोजन,
रातीं करै दोनोॅ के खोजन।

हुन्नें नानी-घर मूसां सोचै,
हिन्नें बिली में नागिन घुसै।

जें सुनसान घरोॅ केॅ छोड़ेॅ,
पछतैतें हुएँ माथोॅ फोड़ेॅ।

घर पर पहरेदारी लगावोॅ,
चोरोॅ सब केॅ दूर भगावोॅ।

अजब खेल हैं जादूगर के / प्रकाश मनु  Baal Kavita  बाल-कविता

 अजब खेल हैं जादूगर के!

लंबी पगड़ी तुर्रेदार
ढीली-ढाली सी सलवार,
आते ही उसने तो भाई
किस्से छेड़े इधर-उधर के!
लेकर दस पैसे का सिक्का
बाँध रूमाल में ऊपर फेंका,
छू-मंतर बोला तो सिक्का
पहुँचा सोनू की नेकर में!

एक टोकरी खाली-खाली
थी सबकी वह देखी-भाली,
जादूगर ने उसे घुमाया
निकल पड़े मुर्गी के बच्चे!

फिर उसने लेकर दस मटके
तोड़ दिए सारे वे झट से,
जब डंडे से उन्हें छुआ तो-
साबुत थे वे सारे मटके!

अजब नजारे / लता पंत  Baal Kavita  बाल-कविता

 हवा चल रही तेज बड़ी थी,
एक खटइया कहीं पड़ी थी!
उड़ी खटइया आसमान में,
फिर मच्छर के घुसी कान में!
वहीं खड़ा था काला भालू,
बैठ खाट पर बेचे आलू।
आलू में तो छेद बड़ा था,
शेर वहाँ पर तना खड़ा था!
लंबी पूँछ लटकती नीचे,
झटका दे-दे मुनिया खींचे!
खिंची पूँछ तो गिरा शेर था,
गिरते ही बन गया बेर था!
बेर देखकर झपटा बंदर,
खाकर पहुँचा पार समंदर!
पार समंदर अजब नजारे,
दिन में दीख रहे थे तारे!
तारों बीच महल था भारी,
राजा की जा रही सवारी!
छोड़ सवारी राजा-रानी,
उठा बाल्टी भरते पानी!
मीठा था मेहनत का पानी,
पीकर झूमें राजा-रानी!
अच्छा भैया, खतम कहानी,
अब तो मुझे पुकारे नानी!

 

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